सिरिभूवलय की एक झांकी
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जब से सिरिभूवलाय की रचना हुई तब से आज तक इसका सरल परिचय न देकर, इस कृति-रत्न को काली कटोरी में रखी गई । अतः आम जनता को यह कृति लोहे के चना जैसे बनने में सफल हुए कन्नड़ साहित्य क्षेत्र के समस्त दिग्गजों को लेखक सुधार्थीजीके सादर कृतज्ञता समर्पित है। आचार्य श्री कुमुदेन्दु (३५०० वर्ष पूर्व) द्वारा रचित सिरिभूवलय अद्भुत ग्रंथ है। इस ग्रंथ का परिचय जब भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी को दिया गया तो उन्होंने इसको संसार का आठवाँ आश्चर्य बताया और इसे राष्ट्रीय महत्व का कहकर इसकी पाण्डुलिपि राष्ट्रीय अभिलेखागार में सुरक्षित करवाई। इस ग्रंथराज में १८ महाभाषाएँ तथा ७०० कनिष्ठ भाषाएँ र्गिभत हैं। अंकराशि से निर्मित यह ग्रंथ अद्वितीय सिद्धान्तों पर आधारित है, विज्ञान का भी यह अभूतपूर्व ग्रंथ है। इस ग्रंथ में बड़ा वैचित्र्य है। इसमें २७ पंक्ति (लाइनें) और २७ स्तंभ (कालम) में ७२९ खाने युक्त कई टेबल हैं, खानों में १ से ६४ तक अंकों का प्रयोग किया गया है, अंकों से ही अलग—अलग अक्षर बनते हैं, उन अक्षरों से इस ग्रंथ के श्लोक पढ़ने के कई सूत्र हैं, उन्हें ‘‘बंध’’ कहा जाता है। बंधों के अलग—अलग नाम हैं। जैसे—चक्रबंध हंसबंध, पद्मबंध, मयूरबंध आदि। बंध खोलने की विधि का जानकार ही इस ग्रंथ का वाचन कर सकता है। इसके एक—एक अध्याय के श्लोकों को अलग—अलग रीति से पढ़ने पर अलग—अलग ग्रंथ निकलते हैं। इसमें ऋषिमंडल, स्वयंभू स्तोत्र, पात्रकेशरी स्तोत्र, कल्याणकारक, प्रवचनसार, हरिगीता, जयभगवद्गीता, प्राकृत भगवद्गीता, संस्कृत भगवद्गीता, कर्नाटक भगवद्गीता गीर्वाण भगवद्गीता, जयाख्यान महाभारत आदि के अंश गर्भित होने की सूचना तो है ही साथ ही अब तक अनुपलब्ध स्वामी समन्तभद्राचार्य विरचित महत्वपूर्ण ग्रंथ गंधहस्ती महाभाष्य के गर्भित होने की भी सूचना है। इसमें ऋग्वेद, जम्बूद्वीवपण्णत्ती, तिलोयपणत्ती, सूर्यप्रज्ञप्ति, समयसार तथा पुष्पायुर्वेद, स्वर्ण बनाने की विधि आदि अनेक विषय गर्भित हैं। भगवान् महावीर की दिव्यध्वनि (विशेष उपदेश) जैसे विभिन्न भाषा—भाषियों को अपनी—अपनी भाषा में सुनाई देती थी, ठीक वही सिद्धान्त इसमें अपनाया गया है, जिससे एक ही अंकचक्र को अलग—अलग तरह से पढ़ने पर अलग—अलग भाषाओं के ग्रंथ और विषय निकलते हैं। इस पर अनुसंधान के परिणाम स्वरूप अनेक विलुप्त ग्रंथ प्रकाश में आएँगे। आज की चिकित्सा पद्धति से भी उच्च चिकित्सा पद्धति प्रकाश में आने की संभावना है, जो संपूर्ण मानव जाति को कल्याणकारी होगी। तात्कालिक ७१८ भाषाओं में निबद्ध हमारी संस्कृति उद्घाटित होगी जिसमें कई चौंकाने वाले तथ्य प्रकाश में आएँगे।
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